Thursday, February 9, 2012


तुम्हारा प्रेम, लबालब!
एक मौसमी 'नाले' की तरह...
जो उफनता है बरसात आने पर..!

मेरा प्रेम, इक 'नदी' की  तरह
हर मौसम में एक सा बहाव
एक सी दिशा...!

प्रचंड गर्मियों में जब सूखता है जल पृथ्वी से...
तब मुझमे नदी की लकीर ,
और निश्छल चमकीली रेत ही दिखती है..

और  तुम्हारे भीतर दिखती है गंदगी
और सड़ी हुई मिटटी
वासना की!!

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