Monday, February 6, 2012

जिस किले में क़ैद हूँ मैं उस किले की
न कोई प्राचीर है, न कोई दर है..!
न कोई पहरा न कोई पहरेदार!
न दिखे  कतरा हुआ, कोई मेरा पर है!
फिर भी पंछी से नन्ही परवाज़ मेरी....
घुट के रह जाती है क्यूँ आवाज़ मेरी...!
है ये कैसी क़ैद कि इस क़ैद में भी..
है नज़रबंदी पर मुझ पर न नज़र है....!!!

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