Monday, February 6, 2012

राज़ की बात मैं तुमसे कह रही हूँ
सुन सकोगे? मैं तो कबसे सह रही हूँ...
एक मुक्कमल सी ईमारत दिख रही हूँ..
पर कहीं भीतर ही भीतर ढह रही हूँ..
है हवाओं की ज़मीन, बादल की छत है..
मुद्दतों से जिस मकाँ में रह रही हूँ ...!!

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