Friday, March 2, 2012


अजब रंग उनकी अदा के, हम तो बस परेशान रहे,
दिन में दिख रहे जो चाँद से, हर रात वे  आफताब रहे...!

पढ़ा भी बहुत लेकिन उन्हें पढ़ने में नाकाम रहे,
हर पन्ना रोज बदला जिसकी ऐसी वे किताब रहे..!

अब  मुकाम उनको मिल गया, क्यूँ छानते हम ख़ाक रहे,
है जवाब हर सवाल का.. पर वे तो  लाजवाब रहे..!!
जागती रही आँख इधर.. देखते वे ख्वाब रहे...........!!!!!

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