Tuesday, December 27, 2011

जानते है आप प्रेम कोई सम्बन्ध (relationship) नहीं, मन की अवस्था (state of mind) है. जब हम सोचते हैं ऐसा कि हम फलां से प्रेम करते हैं तो वह गलत है होता यूँ हैं कि हम प्रेमपूर्ण होते हैं! मैं तो इसे अवस्था ही मानती हूँ, क्यूंकि प्रेम से भरे हुए चित्त से प्रेम ही झरता है रौशनी की तरह सुगंध कि तरह...और जो भी पास आता है अगर वो लेने में समर्थ है तो मिल ही जाता है अगर नहीं तो वो उसकी बात!!!
प्रेम मुक्ति है! वह किसी को बाँधने का प्रश्न ही नहीं उठता.जो पास है उसे मिलता है जो दूर गया... वह गया..!!जैसे दर्पण के सामने कोई रहता है तोउसकी तस्वीर बनती है हटने पर तस्वीर मिटी.. दर्पण फिर खाली! फिर किसी की तस्वीर बनाने को तैयार.!किसी की प्रतीक्षा बनी रहेगी फिर कोइलेने को तैयार!
अगर कोई बंधन है ,कोई रोक है, तो वो आसक्ति है.. न कि प्रेम! आसक्ति रोकती हैकि रुको! नहीं तो फिर  मैं किसे  प्रेम दूंगी ? आसक्ति कहती हैकि तुम ऐसा ऐसा करना तो ही मैं प्रेम करूँ.. तो ये कारागृह में डालना हुआ..  प्रेम तो बे शर्त दान(un conditional giving) है!! प्रेम स्वतंत्र करता है एक व्यक्ति को व्यक्ति बनने देता है वस्तु  नहीं!
आसक्ति प्रेमके मार्ग में एक झूठा सिक्का (hippocracy)है .. तब आदमी सिर्फ संबंधो में जीता है.. जिस दिन पता चले कि मैं प्रेमपूर्ण हूँ ..उस दिन हम आप्तकाम (self fulfilled)होंगे .. और आनंद को उपलब्ध होंगे!!

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