Wednesday, December 14, 2011

मन का खेल है सब... मन कभी लहर तो कभी सागर बनता जाता है. जब विचार उठें तो लहर... जब निर्विचार  हों तो सागर!!!    शायेद यही ध्यान है...
कभी तो यूँ लगता है कि हम हज़ार छिद्र वाले बाल्टी बन गए हैं... जब कुवें में डाले जाते हैं तो  बड़ा शोर होता है... हलचल होती है!
पर जब तक पानी में हैं तभी भरे हुए से प्रतीत हो रहे है... जैसे ऊपर उठते जायेंगे खाली होना शुरू... और वही शोर!! इसी में तो हम खुश हैं...खाली  होने के शोर में...   


हाँ यही हजारों छेद.. हमारे हजारों विचार है...इसी से हमारी उर्जा भी तो कम होती जा रही है. जिस समय निर्विचार  हुए , उर्जा खोने का मार्ग बंद हो जायेगा!
वही उर्जा वापिस  हममे गिरेगी.      मन से खोया है मन से मिलेगा... मन से भटके हैं, मन से पहुचेंगे.. मन ह् रुग्ण है स्वस्थ हो जाए तो मिल जाए जो खोया है...!!...

 फिर क्या, हम ब्रह्म!.. हम परम!! हम सागर....      सत्ता हमारी...!! पर यहाँ हमारे छिद्र, हमारे रंध्र ..हमे खो रहे हैं... चुका रहे हैं...!!!         

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