एक दिन कृष्ण ने राधा के नथ (नाक की मोती) से पूछा :-
'ओ री मोती सीप की तू कौन तपस्या कीन,
सुबरन के ढिग बैठ के.. अधरन को रस लीन'!
(सीप के मोती तुने ऐसी कौन सी तपस्या की है जो सोने के साथ मिल के राधा के अधरों का रसपान कर रहा)
इसपे मोती ने कहा...
"छेड़ छिदो परहित कियों, तजि कुटुंब की लाज...
ओते दुःख मैंने सहे इन अधरन के काज!!"
'ओ री मोती सीप की तू कौन तपस्या कीन,
सुबरन के ढिग बैठ के.. अधरन को रस लीन'!
(सीप के मोती तुने ऐसी कौन सी तपस्या की है जो सोने के साथ मिल के राधा के अधरों का रसपान कर रहा)
इसपे मोती ने कहा...
"छेड़ छिदो परहित कियों, तजि कुटुंब की लाज...
ओते दुःख मैंने सहे इन अधरन के काज!!"
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