Wednesday, October 23, 2013

शिक्षित होने के लिए सीखने के लिए खूब जतन किये हैं दुनिया ने... विद्यालय विश्वविद्यालय के निर्माण आदि. आगे बढ़ने के लिए विस्तार है... हम बढ़ भी रहे. 

पर क्या कोई ऐसी यूनिवर्सिटी है जो भुलाना सिखा दे? पीछे जाना सिखा दे...?
समझ , शिक्षा संस्कार जो मन के स्लेट पर लिखे हुए हैं , क्या कोई फिर से उस स्लेट को धो-पोंछ कर पहले जैसा बना सकता है? 
... एक बार फिर से वही आँखे दे सकते हो. जो बचपन मे मैं लेकर आई थी? हाँ, वही निर्दोष निर्विकार चित्त भी चाहिए ...
सारे प्रमाण पत्र, सारी शिक्षा जलाने की इच्छा है...सारी बुद्धि सारी समझ गवां देने का मन है
रीति- रस्म -संस्कारों को पोछना चाहती हूँ.... और एक बार फिर से उसी रहस्य के साथ सबकुछ देखना चाहती हूँ..वही आह्लाद वही विस्मय और वही विभोर चित्त मुझे फिर से चाहिए... दे सकोगे?
"मैं चीखना चाहती हूँ हाईएस्ट फ्रीक्वेंसी के साथ, चिल्लाना चाहती हूँ... बीते पलों मे एक बार फिर से जाना चाहती हूँ..."

ईश्वर, मेरी उम्र अब आगे मत बढ़ाना हो सके तो मुझे पीछे ही ले चलो...!!

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