Wednesday, October 23, 2013

वह कौन है जो सतत जवाबदेही की सूली पर टंगी है? सदियों से इसी तरह, इन्ही अदालतों के बीच उधड़ी खड़ी है? सभी प्रश्नों के जवाब उसे ही क्यूँ देने हैं?
और भी तो अभियुक्त रहे होंगे इस बहुपरती मुक़द्दमों के? कुछ और भी बयानात ज़रूरी होंगे इस घटते क्रम के? एक उसी के सर पे औंधा आकाश क्यूँ पड़ा है?

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"स्त्री होने की परिणति है अपने से ही लड़ना... जूझना! अपनी निष्ठा को साध्वी सिद्ध करने के लिए हर घडी पंजो पे खड़े रहना.... और कभी कभी अंधड के थम जाने की प्रतीक्षा करना या फिर.... एक कुंड से निकल कर दुसरे में लिथड़ने लगना....."

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