Wednesday, October 23, 2013

तीन चीज़े परमात्मा हाथ मे हैं, जन्म- मृत्यु और प्रेम! परमात्मा यानी समग्र. बाकी आपनी 'आईडेनटीटी', 'जॉब', 'सैलेरी', 'रिश्ते- नाते' सब भरावा है जीवन के, 'फिलर्स' हैं ये सब.
और ज़रूरी नहीं कि जो लोग प्रेम-गीत गा रहे वो प्रेम मे ही आकंठ हों. शायेद जो जीवन मे नहीं मिलता गीत गाकर खुद को समझा लिया जाता है. 
कभी -कभी प्रेम करते मालूम लोगों ने 'इंतजाम' भर ही किया है, जहाँ सुगंध नहीं आती , उनके जीवन से 'घृणा' और वैमनस्य की दुर्गन्ध भर ही आती है.
एक क्षणिक घटना है प्रेम, मृत्यु जैसे. बस यहाँ अहंकार मरता है और आत्मा आविर्भूत होती है.
-प्रेम आकस्मिक है क्रांति जैसे, 'रिवोल्यूशन'!
-प्रेम विस्फोट है, खुद के भीतर 'ब्लास्ट'..!
-प्रेम कोई क्रम नहीं, सीढ़ी दर सीढ़ी भी चढ़ना नहीं... 'होमियोपैथी'का 'स्लो' इलाज भी नहीं है... क्षण मे क्रांति होती है और रूपांतरण होता है...!

(जो प्रेम के लिए तैयार है वह परमात्मा के लिए तैयार है. प्रेम एक ऐसी 'महामृत्यु' है जहाँ शरीर वही रहता है और मन बदल जाता है. कोई और ही उर्जा हमारे भीतर आविष्ट हो जाती है...)

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