आज फिर ...
आज फिर मेसेज मिला उसका
ठीक वैसा ही लिखा था उसने...बरसों बाद भी...
"चलो देखते हैं चाँद को हम-तुम
आज फिर उसी तरह, एक साथ!
ऐसे ही तो देखते थे... पहले भी..!
फिर मीलों दूर बैठ के भी तो देख सकते हैं..
एक साथ!"
"तुम मुझे देखना उसकी नज़रों से.. मैं तुम्हे.."
तीन घंटे बालकनी से आसमान निहार.. झुंझलाकर ये भीतर चली आई...
वो रात भर बैठा रहा छत पे
जले अधजले सिगरेट के टुकड़ों
और बुझी हुई तीलियों के साथ...!
न दिखा चाँद दोनों को....
"आज फिर अमावस की रात थी.......!"
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