Wednesday, January 18, 2012

...कभी काठ की चिता पर तो कभी कलंक की...... अग्नि तो अपने ही देते हैं.. प्राय:..!
......और सुलगती है स्त्री..... धू - धू करते हुए अपने अस्तित्व को देख रही है ... आँचल की ओट से!

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