Monday, January 2, 2012

आज अर्जुन की बात....  मैंने आज इसका खोजा/पढ़ा... बड़ा अर्थपूर्ण है "अर्जुन"!!!
ये शब्द है "ऋजु"... जिसका अर्थ होता है सीधा सादा...(straight ).. और  अ-ऋजु का मतलन- टेढ़ा मेढ़ा!!! डावांडोल...!!! इसका शाब्दिक अर्थ है डोलता हुआ...!!!
हमारा चित्त है ये अर्जुन की भांति है,..  डोलता हुआ.. कभी निश्चय नहीं कर पाता.. सारे कार्य अनिश्चय में होते हैं... हाँ सबके भीतर है अर्जुन!!
वही जो हमारे मन का प्रतीक है...!!!मन का एक ढंग है कि आप कितनी निश्चित बात करें वह उसमे से अनिश्चित निकाल ही लेता है.. जैन फिर इसका क्या होगा.. उसका क्या होगा....?
बातें निश्चित नहीं होतीं.. चित्त निश्चित होते हैं!!!सिद्धांत निश्चित नहीं होते, चेतना निश्चित होती है!
बड़ी कृपा अर्जुन की वरना गीता पैदा नहीं होती.. न वे उठाते प्रश्न न कृष्ण उत्तर देते.. न लिखी जाती गीता!!! कृष्ण जैसे लोग लिखते नहीं सिर्फ responce करते हैं..!! लिखते तो वे लोग हैं जो किसी पे कुछ थोपना चाहते हैं.... कृष्ण तो सिर्फ उत्तर देते हैं.. पुकारने पे आते हैं!!!कोई कुछ न पूछे तो कृष्ण शुन्य और मौन रह जायेंगे..!!!
कृष्ण से कुछ लिया न जा सकता है सिर्फ बुलवाया जा सकता है...प्रतिसंवेदित कर सकते  हैं! अर्जुन ने बुलवाने का काम किया है...उनकी जिज्ञासा उनके प्रश्न कृष्ण के भीतर से तब जन्म पाते हैं..!!!

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