Wednesday, January 25, 2012

सुनो, जहाँ से रिवाजों के बंधन टूटते हैं वहाँ से मेरी दास्ताँ शुरू होती है! जब भी निगाहों के पहरे कसते हैं जज्बातों की गिरफ्त ढीली पड़ती जाती है.. जब पूरे चाँद की रात धरती को भिगोती है...तब आँखों कि सीप में तुम्हारा चेहरा मोती की तरह क़ैद हो जाता है...कभी न आज़ाद होने के लिए.. !!
ये इश्क है इसे तुमने कभी समझा नहीं...लेकिन चाहत के परिंदों को रोकना तुम्हारे वश में न था... न होगा! तुम्हे अपनी ताकत का गुमान है तो हमे अपनी चाहत की कसम है.. ये आँखे अब देखेंगी तो तुम्हारा चेहरा..! चाहे अपनी इज्ज़त का वास्ता दो या जान की कसम.. ये मंजिल की और बढे कदम हैं.. न रुकेंगे न पीछे लौटेंगे...!
हम शहेंशाह हैं प्यार की जागीर के
प्यार इबादत है प्यार खुदा है...
ये आशिक की मजार है..
इक चिराग इश्क का जला दो...
कुछ फूल चढा दो प्यार के...!
आमीन...!!!!

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