... एकाएक लगा कि मैं पूरी तरह सिकुड गयी हूँ...
निसत्व लग रही...
देखते ही देखते जैसे....
सब कुछ थम सा गया है...!
सारा आवेग, सारा आवेश, सारी आपाधापी....!
और हम दोनों ही संवाद के दबाव से खाली हो गए हैं...
चेहरे दिख रहे हैं पर अंगारा बुझ सा गया है...!
फिर अचानक यूँ लगा , मेरे हाथ पैर शिथिल पड़ गए हैं...
पर, चेत इतना चौकस जैसे
चूने से खिची सफ़ेद रेखा पर उठूंग बैठा खिलाड़ी कोई कि,
संकेत मिले और दौड पड़े ,चाहे पता भी ना हो कि
जाना किधर है.....!!!
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