मन तो हमेशा गुंधे आटे सा होता है,
लचीला....
कहीं भी मोड लो.....!
भयानक बात तो ये है
कि मन को नहीं पकड़ सकते...
देह को पकड़ लेते हैं.....!
देह होती ही है ऐसी,
स्थूल, उजागर.. और चुगलखोर...!
"हमलोग कब तक उन बातों के लिए कलंकित होते रहेंगे...
जिन्हें हमने अकेले नहीं किया.....
निषिद्ध कमरों में घुसने का दुस्साहस दोनों करेंगे..
पर काठ की चौखटों पर सिर्फ हमारे सिर ठुकेंगे..
हाँ ...सिर्फ हमारे......"
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