इकट्ठी करनी है हमे दीवानों की जमात...... पागलों..... परवानो... और प्रेमियों की,....जिनमे मर मिटने की हिम्मत हो.... जीवन को दावं पर लगाने का साहस हो.... एक सच्चे जुआरी की तरह!
ऐसे शराबी चाहियें , जो जीवन के रस को आँखें बंद कर पीते हो.... (जहाँ लोग पानी भी छान कर पीते हैं..)!
जीवन के रहस्यों को ऐसे ही पागल समझते है.,,,,, बुद्धिमान सोचता रह जाता है.....!
हमने देखा, बुद्धि में उलझे लोगों को जो अकर्मण्य ही सिद्ध हुए....आज तक ठीक से व्याख्या भी नहीं कर पाए सही-गलत, शुभ-अशुभ की ..क्यूंकि व्याख्या होती है कृत्यों से, जीवन से....बुद्धिमानी से सदा दुनिया हताश और उदास ही रही... ये सिर्फ और सिर्फ राख बटोरते आये हैं सिद्धांतों की....!
अब जो भी होगा दीवानों से होगा .. अच्छा भी बुरा भी.....! इसलिए दो तरह के पागलों ने ही अब तक जो किया है ..बस किया है...!
एक पागलपन बुद्धि से गिरना होता है, जैसे हिटलर...स्टेलिन.... चंगेज खान.. तैमूर लंग.. इत्यादि....!
दूसरा पागलपन बुद्धि से ऊपर उठाना..... जैसे कृष्ण... क्राइस्ट.... बुद्ध.... कबीर... आदि....
दोनों एक अर्थों में पागल हैं.... बुद्धि से नीचे या बुद्धि से पार......!
बुद्धि के पार उठिए... और आगे आइये..... है आपमें ऐसा पागलपन.. दीवानापन..?
"पहले ही मायूस हो चूका है ज़माना एहले-खिरद से...
कुछ अजब नहीं , कोई दीवाना काम कर जाए..............."
No comments:
Post a Comment