Friday, August 19, 2016

देवताओं के पास बड़ी सुन्दर अप्सराएं होती थीं जो हमेशा सोलह साल की  ही हुआ करती थीं.. उनकी देह से पसीना नहीं निकलता था वे हर वक्त सुगन्धित होती थीं  बोले तो हरदम   रसगुल्ला ही रसगुल्ला........!
देवता भी कितने रसगुल्ले खाएं रोज-रोज ? कभी कभी भजिया खाने का मन हुआ तो चले आये पृथ्वी पर...| और यहाँ ऋषि की पत्नी मिलती हैं भ्रष्ट होने को.. जी हाँ अहिल्या...! फिर अहिल्या हो ही अभिशापित होना पड़ता है... पत्थर बन कर..क्या कसूर था अहिल्या का? यहाँ अन्याय देखिये, गौतम ऋषि  ने इन्द्र को अभिशापित ना करके के अहिल्या को किया , स्त्री जो ठहरीं...!

(वही इन्द्र जिनके पास दो ही काम होते थे अप्सराओं को नचाना या फिर ऋषियों या उनकी पत्नियों को भ्रष्ट करना.. ज़रा ऋषियों ने तपस्या नहीं की कि इनका सिंहासन डोलने लगता था फिर या तो मेनका को भेजो विश्वामित्र के पास या फिर ये खुद आयें अहिल्या के पास...)

और अहिल्या का  कल्याण भी लिखा गया कि श्रीराम के स्पर्श से ही वे शाप मुक्त होंगी.. वही श्रीराम जिन्होंने स्वयं अपनी ही स्त्री के भाग्य में  वनवास, गृह-निष्काशन  और अनिपरीक्षा  लिखी  थी..!

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