मान लो किसी ने वीणा देखी ही ना हो कभी बजाया ना हो, उसके आगे आप वीणा रख दो और पूछो यह क्या है? वह तार गिन लेगा तार की लम्बाई नाप लेगा , कितनी लकड़ी लगी है, कितना पीतल लगा है कितने हाथी दांत लगे हैं सब हिसाब लगाकर रख देगा. मगर क्या इससे वीणा का हिसाब आ गया? नहीं... असल बात जो थी इसकी वह चूक गया कि वीणा में संगीत सोया था , जो अगर कुशल होता तो छेड़ देता...
(संगीत ना लकड़ी है ना तार ना पीतल ना चमड़ी... और वीणा भी उसका स्वरुप नहीं बस एक माध्यम है माध्यम. संगीत जो उतरता है किसी आकाश से और वापिस वही लौट जाता है.
हमारी जैविक वासना भी एक माध्यम है उसी में प्रेम उतरता है. जिन्हें बजाना आता है उसे राम मिल जाता है.
"काम की वीणा में राम के स्वर भी उत्पन्न होते हैं... "
जी हाँ बजाने की दक्षता चाहिए वरना वाद्ययंत्र रखने भर से क्या होगा , हमने संगीत उत्पन्न करने के बजाए संगीत को दबाया ज्यादा है इतना कि रुग्ण स्वर ही आ सकते है..
.....हर स्वर संगीत नहीं...!
वीणा कभी गिरे आवाज़ तब भी आती है बच्चे छेड देते हैं तब भी बज उठता है, चूहे दौडेंगे तब भी बजेगा.. परन्तु जब तक संगीत ना पैदा हो स्वर सिर्फ उपद्रव है...)
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