Saturday, August 27, 2016

Valentine day

अपने अपने ज़माने में , मतलब स्कूल कॉलेज टाइम में सब बड़े आशिक , मजनूं, लैला , राँझा , हीर होते थे। उम्र हो जाने पे जब अंकल आंटी टाइप सोच हो गयी तो लगे सब संस्कारी फील करने।
अरे, मनाने दीजिये न वैलेंटाइन डे उनको जो मनाना चाहते हैं। क्या हो जाता है आपको के अचानक मातृ -पितृ पूजन दिवस , ईश्वर भक्ति , इंडियन कल्चर इत्यादि ज़ोर मारने लगता है। प्रेम दिवस ही तो है, कौन सा एनेमी डे मना रहे...? हर दिन ईश्वर भक्ति कीजिये , मात पिता का पूजन कीजिये और संस्कार को भी जीवित रखिये।
चूंकि इंडिया में इज़हारे इश्क़ वर्जित विषय रहा है और वर्जनाएं सदा लुभाती आयीं हैं।
बेहूदी सामाजिक रूढ़ियों को अक्सर नए लहू ने बदला है और बदलते आएंगे। मनाइये बेख़ौफ़ जश्ने मुहब्ब्त शायद बदलाव की हमे ज़रुरत है।
-जब रिवाज़ों के बंधन टूटेंगे तभी इश्क़ की दास्ताने लिखी जाएंगी...!

मुबारक आपको ,मुझको, सबको।

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