मैं लौट रही थी...अपनी सधी हुई लडखडाहटों के साथ...चुप- चाप, निशब्द ..!खंदकों को पार करती हुई ऊँचे नीचे पत्थरों के ढोकों पे पांव रखती हुई ..न हर्ष न विषाद न शोक न क्रोध...!कुछ वैसे ही जैसे..शिव लौट रहे थे सती का शव काँधे पे डाले.मेरे कंधे पर भी इक लाश थी...हाँ ....ये मेरी ही लाश थी!!!
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