Saturday, July 21, 2012

'मन मिटटी होता जा रहा है..
रोज-रोज एक ही सन्देश|
जैसे शब्दों को किसी ढलान से 
धकियाते जा रहे तुम...,
..... और मैं......
रोकती-टोकती
दौड़ती-हांफती
उन्ही-उन्ही इबारतों में.....
लौट-लौटकर जाना चाहती हूँ....
उन्ही-उन्ही दृश्यों में दिखना चाहती हूँ...
जहाँ से तुम भागने का रस्ता ढूंढते रहते हो...!'

No comments:

Post a Comment