अरे सुनो, कल ही तुमने एक बीती बात का गुब्बारा
हाथ में पकडाया था....
जो किसी खोखल में भरी हवा के बल पर उड़ता है,
हाथ तो जैसे खाली थे वैसे ही हैं.
हाँ! पर मन मैला हो गया है...
धरती से आँखों का फासला जो बढ़ गया है....
'दर्द का चीथड़ा मेरे गुमान की पट्टी पर फडफडा रहा है आज भी...'
बताओ ना, किस कांटे को कहूँ कि ,
-तू ज्यादा चुभ रहा है......!
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