Tuesday, July 17, 2012


जाने क्यूँ रिश्तों में मुझे दो टूक सफाई पसंद है...
या इधर या उधर....
बीच में कुछ नही |
बीच होने की 'यातना' कुछ नहीं|

वक्त और मेरे बीच साल भर की  अवधी में घट चुका
इक मीलों लंबा इतिहास है..
पर इन सब से परे
एक छोटे से क्षण में, वक्त ने जैसे
सब देख लिया /साफ़ देख लिया..
और दिखा दिया....
सबसे अलग, अकेला , अपना स्वतंत्र मनोनीत क्षण|
इतने सघन अँधेरे में भी  क्षण-बिंदु से आगे को
खिचती जाती  दिशा -रेख भी स्पष्ट दिखाया वक्त ने..

अब लगा कि जा सकुंगी
मन और तन की हिंसाओं से परे-
-बेबाक.. बेलाग....और अकेली!!!!!

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