Tuesday, July 24, 2012

आठ साल पहले राव दम्पति अपनी बेटी के शोध कार्य के लिए विदेश गए... अपने पिता श्री वी. एस . राव को एक ओल्ड एज होम में दाखिल करा के... २००९ में बिटिया वेल सेटलड थी.... श्री राव अभी भी बंगलोर एक वृद्धाश्रम में हैं... न तो उनके बेटे यहाँ आये न ये गए उनके पास... हाँ अच्छी रकम आ जाती है संस्था के नाम इनके इलाज के लिए... डेढ़ साल से ये परालाइज्ड हैं... !
जीने की इच्छा खो चुके श्री राव, अपनी लंबी चौड़ी मौत खुली आँखों से देखना चाहते हैं.... न डर... न भय .. और न ही कुछ पाने खोने की तमन्ना...! उनसे बातचीत के आधार पर उनकी इच्छा से अवगत हुए हम.. उन्हें जाना.. पहचाना.. जीवन का एक पहलु भी देखा!
ये पंक्तियाँ....
(अनुवाद- कन्नड़ से हिंदी..)

उसने अपने बाएं हाथ से दायाँ हाथ
पूरा छू लिया...छूता रहा..परन्तु कोई स्पंदन नहीं....
कल ही डॉक्टर ने कहा था कि उसका दायाँ भाग मर चुका है..
मन ही मन हंसा था वह,'क्या ऐसा भी होता है..?
-व्यक्ति मर जाए आधा.. और आधा जीवित रहे..?
-आधा भाग अपना हो और आधा पराया...?
आधा सबकुछ सह सके.. और आधा जड़ हो जाए..?'

"जैसे खूटी पर टंगा हो वह, और नीचे देखता हो...
-चलता हुआ संसार.... कुछ जीवित, कुछ मृत...!
और पल पल वह अपनी मृत्यु देखता रहे..
आधा मृत.. और आधा प्रक्रिया में मरने की ....!"
.......
...
'उसकी इच्छा है ... बाहर विराट नीलिमा के अमाप विस्तार
को बाहों में भरना....
महसूसना.....
बाहों न भर सके तो....
आँखों में उतारना...
पूरा का पूरा....
अचूक!!!!'

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