नए दर्दों के साथ उघड आते हैं पुराने दर्द....
हुंह....! दर्द को दावा भी तो नहीं कर सकते कि
तू खूब जाना पहचाना लगता है...!
लगता है, जैसे हरेक दर्द को इक नया नाम चाहिए...
... और रोज ही तो अंतड़ियों का एक हिस्सा उधड़ता जाता है....
... दर्द से....!
सुनो, एक बात बताओगे.....?
क्या हँसते रहने से...
झेलने से... सहने से..
मन के कोने में दफना देने से..
या ऐसे ही तमाम पट्टे लगाए रहने से..
क्या दर्द पतले पड़ जाते हैं??
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