Thursday, July 19, 2012


साटिन के गाउन की  डोरियों को कमर से मुक्त कर
 'बीबीजी' इंटरनेट पर बैठती हैं|
चाय लिए 'सरसतिया ' खड़ी है,
खड़ी- खड़ी ताक रही इशारे का इंतज़ार करती है..
सोच रही कि अच्छा हुआ इंटरनेट ने साँसों की फिजूलखर्ची बचा ली..
पहले तो 'बीबीजी' फोन ही पे होती थीं..
अब पूरमपूर थ्रिल..!!!
बटन दबाव बे-आवाज़  बतियाओ.
'बीबीजी को देख याद आया ' नया मुल्ला खूब प्याज खाता है'
ये उसने नहीं कहा, सदियों से ये उक्ति चली आ रही है..|

पर इधर ई-मेल , फेसबुक का गट्ठर पहली बार जाना...
'बीबीजी' ने तो ये भी बताया था कि
'नेट 'के यातायात में भी ऊब दाखिल हो चुकी है,
जी हाँ..... ऊब....!
या एक संक्रामक 'रोग'...?
छी:.. सरसतिया ने खुद को कोसा मन में..
'दो कप पानी क्या उबाल लिए कि लगी सर चढ़ने,..
 देख सुन के टांग अड़ा, गवांर कहीं की...!'

अप टू डेट तो बीबीजी हैं री...
बिजी जो रहती हैं.. बड़े-बड़े काम, लिखना -पढ़ना...
दफ्तर जाना, इन्टरनेट...
वो कोई सरसतिया थोड़ेई हैं, जो दिनरात अपनी
मरगिल्ली बेटियों के 'भकोसने' का इंतजाम करती रहें.
या अपने पियक्कड रिक्श्वान मरद के हाथो पिटती रहे...
'राम..राम...'

.... बीबीजी ने न तो शादी की
न बच्चे, न गू-मूत...न पियक्कड मरद...
न गुलामी , न सलामी... न मारपीट.....
छुट्टम - छुट्टा आज़ाद...!
ठकुरानी ... महारानी .. बीबीजी रानी.....!!

'फिर कईसन चेहरा रे बीबीजी का....
कभी हैवानियत.... कभी नाखुशी...कभी असंतुष्टि.... कभी रोमांस..
....... और कभी ऊब'..
'.... जी.... हाँ.... ऊब......'!
सरसतिया ने एक बार फिर सोचा और चाय रख चली गयी......!

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