Sunday, July 8, 2012

बच्चे मन के सच्चे'.......... कभी पढ़ना बच्चों के चेहरे, उनकी मासूमियत... कितनी तरलता होती है उनके चेहरे में एक लिक्विडिटी...! हवा के झोंके के समान बदलता चेहरा...मासूमों के चेहरे कठोर नहीं होते... कठोर चेहरे मुर्दों के होते हैं.. जिंदा के नहीं.. या फिर पत्थर दिलों के... जिनके लिए सब फिक्स्ड हो गया है...तो चेहरा पथरीला हो गया...! मैं नहीं कहती कि चेहरे मत बदलो.. बदलो, खूब बदलो.. बच्चों के सामान लिक्विडिटी आने दो...पर, चेहरे को पत्थर ना बनने दो... असली चेहरे को रखो सामने...असली चेहरे में तरलता होगी , जो चांदनी रात में कुछ और होगा.. अँधेरी रात में कुछ और.. सुख में कुछ और दुःख में कुछ और...यही संवेदनशीलता है...! इर्ष्य राग- द्वेष रखनेवाले व्यक्ति संवेदनशील नहीं होते...!
"ह्म्म्म..... जिंदगी में एक परिवर्तन ही ऐसी चीज़ है जो परिवर्तित नहीं होती...!"

बच्चों आज एक क्लासिकल गाना सुनो.. शायेद हमने.. आपने.. हमारे माँ.. बाप ने भी इसे सुना हो..... बिलकुल बिहारी छाप लिए.... :)

"अटकन बटकन, दही -चटाकन
बार फूले बरेला फूले..
सावन मास करेला फूले.
जा बेटी गंगा
गंगा से कसैली ला
कच्चे कच्चे नेउर के, दे पक्के पक्के तू खा...."

(नेउर= नेवला)
:)

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